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What do Muslims do after going to Hajj?

हज पर जाकर मुसलमान क्या-क्या करते हैं?

हर साल होने वाला ये धार्मिक आयोजन 7 जुलाई से 11 जुलाई तक है. दो साल बाद इतने बड़े पैमाने पर श्रद्धालु सऊदी अरब के मक्का में जुट रहे हैं. कोरोना वायरस संक्रमण की वजह से हज पर कई तरह की पाबंदी लगा दी गई थी. हालांकि, इस साल की संख्या भी कोरोना से पहले की संख्या के मुक़ाबले काफी कम है.

आइए जानते हैं हज और इससे जुड़ी बड़ी बातें:

हज क्या है?
इस्लाम के 5 फर्ज़ में से एक फर्ज़ हज है. बाकी के चार फर्ज़ हैं- कलमा, रोज़ा, नमाज़ और ज़कात.
धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक़, शारीरिक और आर्थिक रूप से सक्षम हर मुसलमान को अपनी ज़िंदगी में कम से कम एक बार इस फर्ज़ को निभाने का दायित्व है. इस्लाम धर्म की मान्यताओं के मुताबिक़, पैग़ंबर इब्राहिम को अल्लाह ने एक तीर्थस्थान बनाकर समर्पित करने के लिए कहा था.

इब्राहिम और उनके बेटे इस्माइल ने पत्थर का एक छोटा-सा घनाकार इमारत बनाई थी. इसी को क़ाबा कहा जाता है. बाद के वक्त में धीरे-धीरे लोगों ने यहां अलग-अलग ईश्वरों की पूजा शुरू कर दी.

मुसलमानों का ऐसा मानना है कि इस्लाम के आख़िरी पैगंबर हज़रत मोहम्मद (570-632 ई.) को अल्लाह ने कहा कि वो क़ाबा को पहले जैसी स्थिति में लाएं और वहां केवल अल्लाह की इबादत होने दें.

साल 628 में पैग़ंबर मोहम्मद ने अपने 1400 अनुयायियों के साथ एक यात्रा शुरू की थी. ये इस्लाम की पहली तीर्थयात्रा बनी और इसी यात्रा में पैग़ंबर इब्राहिम की धार्मिक परंपरा को फिर से स्थापित किया गया. इसी को हज कहा जाता है.

हर साल दुनियाभर के मुस्लिम सऊदी अरब के मक्का में हज के लिए पहुंचते हैं. हज में पांच दिन लगते हैं और ये ईद उल अज़हा या बकरीद के साथ पूरी होती है.

हज 2022 में कितने लोग शामिल हुए हैं?
इस साल 10 लाख देसी और विदेशी तीर्थयात्रियों के आने की उम्मीद है. इसमें से 85% विदेशी तीर्थयात्री हैं.

इससे पहले कोरोना की वजह से साल 2021 में क़रीब 60 हज़ार लोगों को हज पर आने की अनुमति दी गई थी, साल 2020 में ये संख्या और भी कम थी.

दोनों ही साल सऊदी अरब में रहने वाले लोग ही हज पर जा सके थे. हालांकि, कोरोना से पहले साल 2019 में क़रीब 25 लाख लोग हज पर गए थे.

इस बार भारतीय हज यात्रियों के लिए 79,237 लोगों का कोटा तय किया गया है. भारतीय भी दो साल बाद हज पर जा रहे हैं. इसमें से 56,601 लोग भारतीय हज समिति के ज़रिए और 22,636 लोग हज ग्रुप ऑर्गेनइज़र्स के ज़रिए पहुंचे हैं.

किन-किन देशों से लोग मक्का आते हैं?
सऊदी अरब हर देश के हिसाब से हज का कोटा तैयार करता है. इंडोनेशिया का कोटा सबसे ज्यादा है. इसके बाद पाकिस्तान, भारत, बांग्लादेश, नाइजीरिया का नंबर आता है. इसके अलावा ईरान, तुर्की, मिस्त्र, इथियोपिया समेत कई देशों से हज यात्री आते हैं.

हज 2022 के लिए अनिवार्य नियम क्या हैं?
हज के लिए सऊदी अरब की सरकार ने कुछ नियम तय किए हैं. इसके मुताबिक़, हर हाजी के लिए ज़रूरी है कि वो कम से कम एक महीने पहले तक कोरोना वैक्सीन के लिए दोनों डोज हासिल कर ले. साथ ही 18 साल से 65 साल की उम्र के लोग ही हज पर जा सकते हैं.

भारत के संदर्भ में बात करें तो आमतौर पर बच्चे और महिलाओं को मेहरम के साथ ही हज पर जाने की अनुमति है. मेहरम का मतलब है महिला तीर्थयात्री का पुरुष साथी, जो पूरे हज यात्रा के दौरान महिला के साथ रहे. लेकिन पिछले कुछ साल में 45 साल से अधिक उम्र की महिलाओं को बिना मेहरम के ही हज करने की अनुमति दी गई है. महिलाओं को पांच महिलाओं का समूह बनाकर हज जाने की मंजूरी दी गई है.

हज पर जाकर मुसलमान क्या-क्या करते हैं?

हज यात्री पहले सऊदी अरब के जेद्दा शहर पहुंचते हैं. वहां से वो बस के ज़रिए मक्का शहर जाते हैं. लेकिन मक्का से ठीक पहले एक ख़ास जगह है जहां से हज की आधिकारिक प्रक्रिया शुरू होती है. मक्का शहर के आठ किलोमीटर के दायरे से इस विशेष जगह की शुरुआत होती है. इस विशेष जगह को मीक़ात कहते हैं.

अहराम

हज पर जाने वाले सभी यात्री यहां से एक ख़ास तरह का कपड़ा पहनते हैं जिसे अहराम कहा जाता है. हालांकि कुछ लोग बहुत पहले से ही अहराम पहन लेते हैं. अहराम सिला हुआ नहीं होता है, यह सफ़ेद रंग का कपड़ा होता है. महिलाओं को अहराम पहनने की ज़रूरत नहीं होती, वो परंपरागत सफ़ेद रंग के कपड़े पहनती हैं और अपना सिर ढंकती हैं.

उमरा

मक्का पहुंचकर मुसलमान सबसे पहले उमरा करते हैं. उमरा एक छोटी धार्मिक प्रक्रिया है. हज एक विशेष महीने में किया जाता है लेकिन उमरा साल में कभी भी किया जा सकता है. लेकिन जो लोग भी हज पर जाते हैं वो आमतौर पर उमरा भी करते हैं, हालाकि ये अनिवार्य नहीं है.

मीना शहर और अराफ़ात का मैदान

आधिकारिक तौर पर हज की शुरुआत इस्लामिक महीने ज़िल-हिज की आठ तारीख़ से होती है. आठ तारीख़ को हाजी मक्का से क़रीब 12 किलोमीटर दूर मीना शहर जाते हैं. आठ की रात हाजी मीना में गुज़ारते हैं और अगली सुबह यानी नौ तारीख़ को अराफ़ात के मैदान पहुंचते हैं.

हज यात्री अराफ़ात के मैदान में खड़े होकर अल्लाह को याद करते हैं और उनसे अपने गुनाहों की माफ़ी मांगते हैं. शाम को हाजी मुज़दलफ़ा शहर जाते हैं और नौ तारीख़ की रात में वहीं रहते हैं. दस तारीख़ की सुबह यात्री फिर मीना शहर लौटते हैं.

जमारात

उसके बाद वो एक ख़ास जगह पर जाकर सांकेतिक तौर पर शैतान को पत्थर मारते हैं. उसे जमारात कहा जाता है. शैतान को पत्थर मारने के बाद हाजी एक बकरे या भेड़ की कुर्बानी देते हैं. उसके बाद मर्द अपना सिर मुंडवाते हैं और महिलाएं अपना थोड़े से बाल काटती हैं.

ईद-उल-अज़हा

उसके बाद यात्री मक्का वापस लौटते हैं और क़ाबा के सात चक्कर लगाते हैं जिसे धार्मिक तौर पर तवाफ़ कहा जाता है. इसी दिन यानी ज़िल-हिज की दस तारीख़ को पूरी दुनिया के मुसलमान ईद-उल-अज़हा या बक़रीद का त्योहार मनाते हैं.

तवाफ़ के बाद हज यात्री फिर मीना लौट जाते हैं और वहां दो दिन और रहते हैं. महीने की 12 तारीख़ को आख़िरी बार हज यात्री क़ाबा का तवाफ़ करते हैं और दुआ करते हैं. इस तरह हज की प्रक्रिया पूरी होती है.


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